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Information about the soul | आत्मा के बारे में जानकारी

जैसे घी के साथ मिट्टी मिली हुई है और उसको हमने गर्म कर दिया है | मिट्टी से मिला होने पर भी घी तो घी ही है , मिट्टी अलग द्रव्य है और घी अलग | गर्म होते हुए भी वह घी अपने स्वभाव में अर्थात चिकनेपने में ही विद्यमान है | गर्मपने के अभाव में भी चिकनेपने की अर्थात घी की उपलब्धि होती है , परन्तु चिकनेपने के अभाव में घी की उपलब्धि नहीं होती , अतः चिकनापना ही घी का ( स्वभाव ) सर्वस्व है | घी में गर्मी स्वयं नहीं आई अपितु अग्निजन्य है |   यहाँ दृष्टांत में मिट्टी के स्थान पर शरीर , चिकनेपने के स्थान पर चैतन्य , गर्मी के स्थान पर भावकर्म और अग्नि के स्थान पर द्रव्यकर्म हैं | मिट्टी और घी के मिश्रण के समान शरीर व् चैतन्य मिलकर एक से भास् रहे हैं , परन्तु हैं वे पृथक - पृथक द्रव्य , और गर्म घी के समान चैतन्य भी राग - द्वेष

भोजन में भाव शुद्धि भी जरूरी

भोजन पर भावनाओं का भी गहरा असर पड़ता है इसलिए व्यक्ति को निराेगी रहने के लिए भोजन शुद्ध भाव से ग्रहण करना चाहिए। क्रोध , ईर्ष्या , उत्तेजना , चिंता , मानसिक तनाव , भय आदि की स्थिति में किया गया भोजन शरीर में दूषित रसायन पैदा करता है। इससे शरीर कई रोगों से घिर जाता है। शुद्ध चित्त से प्रसन्नतापूर्वक किया गया आहार शरीर को पुष्ट करता है। कुत्सित विचार और भावों के साथ कि ‍ ए गए भोजन से व्यक्ति कभी स्वस्थ नहीं रह सकता। इसी के साथ भोजन बनाने वाले व्यक्ति के भाव भी शुद्ध होने चाहिए। उसे भी ईर्ष्या , द्वेश , क्रोध आदि से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। इस तरह इन चारों शुद्धियों के साथ भोजन ग्रहण करें तो निश्चित रूप से हमारा मन निर्मल रहेगा और शरीर भी स् ‍ वस् ‍ थ रहेगा।   ** Visit: http://jainismSansar.blogspot.com for more or like www.fb.com/jaini