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जिनमन्दिर सम्बन्धी 84 आशातनाये


जिनमन्दिर सम्बन्धी 84 आशातनाये


हमारे महान जैन धर्म में मंदिर में प्रवेश करने के बाद मंदिर के प्रति भी 84 आशातनाये मानी गई है
और इन 84 आशातनाओ का हमको निषेध मानकर बहुत ध्यान रखना चाहिए.......
84
आशातनाये इस प्रकार की होती है ....

- श्री जिनमन्दिर में खांसना (कफ थूकना)|
- जुआ,ताश, शतरंज, चौपड, किरकेट आदि कोई गैर मर्यादितखेल खेलना | 
- कलह करना या जोर जोर से चिल्लाकर बोलना |
- धनुष, बन्दुक, तलवार, चाक़ू, लाठी आदि से निशाना लगाना या खेल दिखाना |
- कुल्ला करना | 
- दांत को किसी चीज़ से कुचरकर मेल निकालना | 
- तम्बाकू, पान या गुटखा आदि खाकर पिक थूकना | 
- मंदिर परिसर में रात को रुकना |
- गाली गलोच, अपशब्द बोलना |
१०- संडासया पेशाब करना | 
११- हाथ धोना | 
१२- खरुंत आदि कुचरकर निकालना | 
१३- कंघी आदि से बालो को सवारना |
१४- नख काटना या मुह से कुतरना | 
१५- खून आदि गिर रहा हो तो भी परिसर में प्रवेश करना |
१६- भोजन करना या प्रसाद आदि खाना और बांटना |
१७- दवाई आदि का सेवन करना | 
१८- वमन यानी उलटी आदि करना | 
१९- दांत गिराना | 
२०- हाथ पैरो पर मालिश आदि करना |
२१- किसी प्रकार के चौपाये को बांधना | 
२२- आँख से गिड मेल आदि निकालना |
२३- नाख़ून का मेल फेकना |
२४- चेहरा रगड़कर साफ़ करना और मेल को गिरना |
२५- नाक का मेल निकाल कर फेकना या दीवारों पर लगाना |
२६- माथे का मेल या जुए आदि निकालना|
२७- रजस्वला स्त्री का बिना बाल धोये प्रवेश करना |
२८- कान या शरीर में कही रसी रहा हो तो भी मंदिर में जाना | 
२९- भूत प्रेत,पिसाच,योगिनी, वशीकरण, मैली विद्धयाओ की साधना करना |
३०- विवाह सगाई तय करने के लिए बाते करना |
३१- व्यपार और व्यवसाय के लेन देन का हिसाब करना | 
३२- मंदिर की दीवाल पर गौबर के ठेपले थापना या किसी प्रकार का व्यावसायिक पोस्टर आदि लगाना |
३३- राज्य या व्यपारिक कार्य का बंटवारा करना |
३४- आपस में पारिवारिक धन भूमि आदि का बंटवारा करना |
३५- घर का खजाना आदि चौर आदि के भय से मंदिर मेंरखना या छुपाना |
३६- मंदिर में पैर पर पैर चढ़कर बैठना |
३७- मंदिर का देव द्रव्य किसी बहाने से घर ले जाना |
३८- मंदिर का देव द्रव्य या साधारण खाते के अतिरक्त पैसे को ब्याज पर देना और लेना |
३९- अनाज दलना, चुगना, बिनना, छांटना आदि | 
४०- किसी प्रकार का पकवान बनाना या सब्जिय सुखाना |
४१- पुलिस, चौर, लेनदार आदि के भय से मूल गभारे में छुपना | 
४२- शोक सभा का आयोजन करना | 
४३- स्त्री कथा, देश कथा, राज्य कथा और भोजन कथा ये चार प्रकार की विकथा करना या कहना |
४४- गन्ने, सब्जिया को किसी धारदार ओजार से छिलाना या कपडे को काटना |
४५- सर्दी से बचने के लिए आग जलाकर तापना |
४६- रसोई बनना | 
४७-देव द्रव्य को किसी नियत से बिना किसी को बताये छुपाना या काम लेना |
४८- भगवान् की असली आँगी या दूसरी वस्तुए बदलकर नकली वहा रख देना और किसी को बताना नहीं |
४९-मंदिर में प्रवेश के समय विद्धि से निस्सिह नहीं बोलना |
५०- छाता, छड़ी, तलवार आदि अन्दर लेकर जाना |
५१- जूत्ते, मौजे, पर्स या बेल्ट आदि पहनकर प्रवेश करना | 
५२- दुसरो की बुराई आदि करना |
५३- मन को बिना एकाग्र किये प्रवेश करना | 
५४- हाथ पैर दबवाना या दबाना या खासकर के सास ससुर के पावो को हाथ नहीं लगाना और दबाना भी नहीं चाहिए |
५५- फूलो का हार पहनकर प्रवेश करना |
५६- दिखावे के लिए चेन, घडी,सोना आदि पहनकर प्रवेश करना | 
५७- भगवन के सामने बैठकर भगवान् को देखकर इधर उधर देखना,या वहा की वस्तुओ का मन ही मन में मूल्याङ्कन करना |
५८- फ़ोन, मोबाईल, वायरलेस पर बात करना |
५९- मुकुट, विवाह आदि का तुरा, कलंगी मोड़ आदि बंधकर प्रवेश करना |
६०- संतो के बिच में आकर के या आगे आकर के पहले दर्शन करना|
६१- फलछिलना और वही छिलके डालना |
६२ - संत मंदिर में दर्शन विद्धि आदि कर रहे हो या भमती में फेरी लगा रहे हो तो बिच में या सामने आकर के उनके पाँव को छूना |
६३- मंदिर के अन्दर किसी सेठ साहूकार राजा महाराजा या नेता के जयकार की उद्घोषणा जोर जोर से करना | 
६४- मंदिर परिसर में नारियल तोड़ना या उसका पानी गिराना | 
६५- मंदिर में सिर्फ श्रीपुज्य, आचार्य को ही आसन लगाकर उस पर अपना ओघा रख सकते है लेकिन श्रावक को भगवान् के सामन कभी आसन पर नहीं बैठना चाहिए|
६६- मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले मौनव्रत नहीं धारण करना और अन्दर जाकर के जोर जोर से भजन, श्लोक, स्त्रोत्र बोलकर दुसरे ध्यानमग्न भक्तो का ध्यान भंग करना या अपनी और आकर्षित करना |
६७- गभारे में पूजा के वस्त्र के बिना प्रवेश करना |
६८- अपनी शेखी बघारने के लिए बड़ी बड़ी और ऊँची बोली लगाकर आरती लेना और फिर बिना धन चुकाए चुपचाप वहा से सिरक जाना |
६९- धन कमाने के लिए किसी प्रकार की वस्तुए बेचना या दूकान आदि लगाना |
७०- संत मंदिर में प्रवेश करे और श्रावक यदि उनको देखकर चुप रहे व् जिन शाशन देव की जय बोले तो आशातना होती है |
७१- गिले बाल और गिले कपडे मंदिर में सुखाना | 
७२- पद्मासन लगाकर बैठना | 
७३- खडाऊ पहनकर, ताबीज, डोरा, जंतर काला धाँगा बांधकर या रुद्राक्ष की माला पहनकर प्रवेश करना | 
७४-ध्यान मग्न की अवस्था के बाद वही पर पाँव पसारकर बैठ जाना या फिर आलस आदि मोड़ना या जोर जोर से जम्हाइया लेना | 
७५- मुह में कुछ खाया हो और कुल्ला किये बिना प्रवेश करना |
७६- गिल्ले पाँव से प्रवेश करना और अन्दर पाँव पोंछना |
७७- भेंट, फूल पैसा आदि भण्डार में डालकर भगवान् की तरफ उछालना |
७८ - भगवान् के सामने बैठकर ओरतो को ताकना या ओरते मर्दों को ताकना या फिर भगवान् से इन्ही बातो को माँगना की वो मेरे को प्राप्त हो जाये |
७९- मंदिर के कपाट बंद हो गए हो तो खुलवाकर दर्शन करना |
८०- स्त्री और पुरुषो को बैठने के समय ध्यान रखना चाहिए की उनके प्तांग आदि दिखे |
८१- मंदिर में बैठकर वैदगी करना, कुंडली की बाते करना आदि |
८२- संतो के साथ प्रवेश के समय शांति रखकर उतावल करना |
८३- बिस्तर लगाकर सोना या बैठना | 
८४- पिने का पानी, खाने की वस्तु, साथ रखना और बच्चो को उत्पात करने से रोकना |

हम सब को उपर लिखी इन बातो का विशेष ध्यान रखना चाहिए और ये ज्ञान सबको भी बांटना चाहिए ताकि भगवान् की और मंदिर की शुद्धता और सात्विकता बनी रहे 
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