नंगे पाव चलता इन्सान को लगता है . कि " चप्पल होते तो कितना अच्छा होता " . बाद मेँ , " साइकिल होती तो कितना अच्छा होता " . उसके बाद , " मोपेड होता तो थकान नही लगती " . बद मेँ सोचता है " मोटर साइकिल होती तो बातो - बातो मेँ रास्ता कट जाता " . फिर ऐसा लगता है , " कार होती तो धुप नही लगती " . फिर लगता है कि , " हवाई जहाज होती तो इन ट्राफिक कि जंजट नही होती " . जब हवाई जहाज मेँ बेठकर नीचे हरे - भरे घास के मैदान देखता है तो सोचता है , कि " नंगे पाव घास मेँ चलता तो दिल को कितनी तसल्ली मिलती " . . "" जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं। . क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है ; और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है "...
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जन्म से जैन होना भी सौभाग्य की बात है, पर उससे भी परम सौभाग्य की बात है.. जीवन में दया, क्षमा, सत्य, शील, संतोष, सदाचार आदि जैनत्व के संस्कार आना