नंगे पाव चलता इन्सान को लगता है
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कि
"चप्पल होते तो कितना अच्छा होता"
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बाद मेँ,
"साइकिल होती तो कितना अच्छा होता"
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उसके बाद,
"मोपेड होता तो थकान नही लगती"
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बद मेँ सोचता है
"मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ
रास्ता कट जाता"
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फिर ऐसा लगता है,
"कार होती तो धुप नही लगती"
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फिर लगता है कि,
"हवाई जहाज होती तो इन ट्राफिक कि जंजट नही होती"
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जब हवाई जहाज मेँ बेठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,कि
"नंगे पाव घास मेँ चलता तो दिल को कितनी तसल्ली मिलती"
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""जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
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क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है""
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