तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा क्यों की जाती है ?
नव अंग
१. अंगूठा
२. घुटना
३. हाथ
४. कंधा
५. मस्तक
६. ललाट
७. कंठ
८. हृदय
९. नाभि ॥
तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा क्यों की जाती है ?
प्रश्न १.- अंगूठे की पूजा क्यो
की जाती है ?
उत्तर - तीर्थंकर परमात्मा जी ने केवलज्ञान करने के लिए तथा आत्म कल्याण हेतु जन~जन को प्रतिबोध देने के लिए चरणों से विहार किया था, अतः अंगूठे की पूजा की जाती है !
प्रश्न २-. घुटनों की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर .- घुटनों की पूजा करते समय यह याचना करनी चाहिए की ~•~हॆ परमात्मा~•~ साधना काल मे आपने घुटनों के बल खडे रह कर साधना की थी और केवलज्ञान को प्राप्त किया था मुझे भी ऎसी शक्ति देना की में खडे~खडे साधना कर सकु ॥
प्रश्न ३-. हाथ की पूजा क्यो कि जाती है ?
उत्तर- तीर्थंकर परमात्मा जी ने दिक्षा लेने से पूर्व बाह्म निर्धनता को वर्षिदान देकर दुर किया था और केवलज्ञान प्राप्ति के बाद देशना एवं दिक्षा देकर आंतरिक गरीबी को मिटाया था उसी प्रकार मे भी संयम धारण कर भाव द्रारिद्र को दुर कर संकू !
प्रश्न ४.- कंधे की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर - . तीर्थंकर परमात्मा जी अनंत शक्ति होने पर भी उन्होने किसी जीव को न कभी दुःखी किया न कभी अपने बल का अभिमान किया वैसे ही आत्मा की अनंत शक्ति को प्राप्त करने एवं निरभिमानी बनने कि याचना कंधों की पूजा के द्वारा की जाती है ॥
प्रश्न ५.- मस्तक की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर- तीर्थंकर परमात्मा जी केवलज्ञान प्राप्त कर लोक के अग्रभाग सिध्दशिला पर विराजमान हो गये है उसी प्रकार की सिद्धि को प्राप्त करने के लिए मस्तक की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ६-- ललाट की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर - तीर्थंकर परमात्मा जी तीनो लोको मे पूजनीय होने से तिलक के समान है उसी अवस्था को प्राप्त करने के लिए ललाट की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ७-. कंठ कि पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर - . तीर्थंकर परमात्मा जी ने कंठ से देशना दे कर जीवो का उद्धार किया था इस प्रयोजन से कंठ की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न - ८. ह्रदय की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर- तीर्थंकर परमात्मा जी ने उपकारी और अपकारी सभी जीवो पर समान भाव रखने के कारण ह्रदय की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न- ९. नाभि की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर - नाभि मे आठ रुचक प्रदेश है जो कर्म रहित है मेरी आत्मा भी आठ रुचक प्रदेशों की भाँति कर्म मुक्त बने इसी भावना से तीर्थंकर परमात्मा जी के नाभि की पूजा की जाती है.
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