✍ज्ञान से बडी कोई शक्ति नहीं,
✍ज्ञान से बडा कोई बल नही,
✍ज्ञान से बड़ा कोई धन नही,
✍ज्ञान से बड़ी कोई पूजा नहीं,
✍ज्ञान से बड़ी कोई साधना नहीं,
✍ज्ञान से बड़ी कोई आराधना नहीं,
ज्ञान पंचमी की आराधना..
ज्ञान की आराधना का दिन है।
तीर्थंकर भगवान् महावीर ने अपनी देशना में कहा है... स्थाई सुख के साधन है... ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप l
◾सुख में बाधा डालने वाले है...
क्रोध, मान, माया और लोभ l
❇ ये पाँच ज्ञान की आराधना में बाधक कारण है, अतः
अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ ।
थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सए णय प ।।
अर्थात् : अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य... ज्ञान-प्राप्ति में बाधक कारण है l
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ज्ञानपंचमी दिवस की क्रिया - आराधना...
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जिनालय में जाकर बच्चों द्वारा ज्ञान के साधन : पुस्तक काँपी, पैन, पैसिल आदि चढवाकर ज्ञान की वासक्षेप से पुजा जरूर कराये l
आज से ज्ञान पंचमी की आराधना तप शुरू करने का विधान है, जिसकी अवधि 5 वर्ष 5 माह होती है....
ज्ञान पंचमी की क्रिया -
51 - लोगस्स का काउस्सग
51 - प्रदक्षिणा
51 - खमासमणा
51 - साथियाँ
== "ऊँ ह्रीँ णमो नाणस्स" ==
इस पद की 20 नवकार वाली,
उपवास, आयंबिल, एकासना आदि तप से करे, सामायिक, प्रतिक्रमण, देववंदन आदि करे l
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*नोटः* यह लिखने का उद्धेश्य भी ज्ञान की आराधना को ओर गतिमान कार्यरूप देना ही है, कृपया अन्यथा न समझे l
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http://jainismSansar.blogspot.com/
ज्ञान वडूं संसार मां, ज्ञान परम् सुख हेत,
ज्ञान विना जग जीवड़ा, न लहे तत्व संकेत l
ज्ञान आत्मा का मौलिक गुण है, ज्ञानावर्णीय कर्म के कारण यह गुण आवरण वाला हो गया है - यह आवरण दूर होते ही आत्मा अपने मूल गुण युक्त प्रकट हो जाती है । सम्यग् ज्ञान आत्मा के लिए कितना आवश्यक है उसका स्पष्टीकरण आगम में कहा है - "पढमं नाणो तओ दया" "प्रथम् ज्ञान ने पछी अहिंसा" अर्थात् प्रथम् ज्ञान और बाद में महाव्रत, व्रत, नियम आदि l जैनागमों में धर्म को सूक्ष्म बुद्धि से करने का विधान है, स्थूल बुद्धि से किया जाने वाला धर्म - अधर्म के खाते में चला जाता है, अत: सम्यग् ज्ञान को जानना प्रथम आवश्यक है l शुभम् अस्तु ।।
जैनिज्म : सद्-गति से परम्-गति की ओर...
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*जय जिनेन्द्र*
बहुत सुंदर जानकारी
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