1. आरती एवं मंगलदीप उतारने से सात भवों के पाप कटते है । 2. मंगलदीप आरती से पूर्व प्रज्ज्वलित करना चाहिये l 3, आरती आँख के ऊपर और नाभि से नीचे नही ले जाना चाहिये । 4. आरती उतारते समय श्रावक पगड़ी / पाघड़ी व दुपट्टा रखता है और श्राविकाए चुनरी ओढती है, खूले मस्तक आरती उतारने से आशातना लगती है । 5. आरती उतारते वक्त देवाधिदेव के दोनों तरफ चंवर, पंखा, झालर डंका, नगाड़े बजते है और घण्टनाद शंखनाद भी अवश्य करना चाहिये । 6. आरती सजोड़े या एक ही व्यक्ति को उतारनी चाहिये... 7. आरती बोलते समय एक दूजे आरती बदलते है वो वह आरती अखण्ड नही रहती, खण्डित हो जाती है । 8. आरती में कुछ नगद नारायण रखकर उतारना चाहिये, खाली हाथ नही । 9. आरती प्रज्ज्वलित यदि करना है तो माचित से नही, धूपबत्ती से प्रज्ज्वलित होती है । 10. आरती उतारने के बाद अपनी ओर रखना और चावल से वधाना चाहिये । आरती - दीपक जलाकर भगवान की महिमा का गुणगान करना आरती है। आरती प्रातःकाल पूजन के समय और संध्या काल अर्थात सूर्य अस्त से पहले करनी चाहिए। सूर्य अस्त के बाद या रात्रि में आरती न करें तो अच्छा है...
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जन्म से जैन होना भी सौभाग्य की बात है, पर उससे भी परम सौभाग्य की बात है.. जीवन में दया, क्षमा, सत्य, शील, संतोष, सदाचार आदि जैनत्व के संस्कार आना