1. आरती एवं मंगलदीप उतारने से सात भवों के पाप कटते है ।
2. मंगलदीप आरती से पूर्व प्रज्ज्वलित करना चाहिये l
3, आरती आँख के ऊपर और नाभि से नीचे नही ले जाना चाहिये ।
4. आरती उतारते समय श्रावक पगड़ी / पाघड़ी व दुपट्टा रखता है और श्राविकाए चुनरी ओढती है, खूले मस्तक आरती उतारने से आशातना लगती है ।
5. आरती उतारते वक्त देवाधिदेव के दोनों तरफ चंवर, पंखा, झालर डंका, नगाड़े बजते है और घण्टनाद शंखनाद भी अवश्य करना चाहिये ।
6. आरती सजोड़े या एक ही व्यक्ति को उतारनी चाहिये...
7. आरती बोलते समय एक दूजे आरती बदलते है वो वह आरती अखण्ड नही रहती, खण्डित हो जाती है ।
8. आरती में कुछ नगद नारायण रखकर उतारना चाहिये, खाली हाथ नही ।
9. आरती प्रज्ज्वलित यदि करना है तो माचित से नही, धूपबत्ती से प्रज्ज्वलित होती है ।
10. आरती उतारने के बाद अपनी ओर रखना और चावल से वधाना चाहिये ।
आरती -
दीपक जलाकर भगवान की महिमा का गुणगान करना आरती है। आरती प्रातःकाल पूजन के समय और संध्या काल अर्थात सूर्य अस्त से पहले करनी चाहिए। सूर्य अस्त के बाद या रात्रि में आरती न करें तो अच्छा है। आरती का समय संध्याकाल है।
आरती अर्थात दीपक भगवान के केवल ज्ञान का प्रतीक है। अर्थात जिस प्रकार दीपक स्वयं पर प्रकाशक है। उसी तरह भगवान का ज्ञान भी स्वपर प्रकाशक है, उसी की प्राप्ति हेतु आरती की जाती है।
आरती करने से हमें केवल ज्ञान की प्रेरणा मिलती है अर्थात जिस तरह से आरती की लौ स्वर प्रकाशक है ठीक उसी प्रकार केवल ज्ञान भी स्वपर प्रकाशक होता है उस स्वर पर प्रकाशक ज्ञान की प्यास आरती को देखने से जागती है तो उसकी प्राप्ति का लक्ष्य बनता है। लक्ष्य बनने से ही पुरूषार्थ प्रारम्भ होता है और एक समय ऐसा आता है जब हमें उसकी प्राप्ति हो जाती है अर्थात केवल ज्ञान प्राप्ति का प्रथम चरण आरती ही है। स्नात्र पूजा में पहले आरती होती है फिर शांति कलश l
आरती
जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरुदेवी को नंदा ।।
पहली आरती पूजा कीजे,
नरभव पामी ने ल्हावो लीजे ।।
दूसरी आरती दीन दयाला,
धूलेवा नगरमां जग अजवाला ।।
तीसरी आरति त्रिभुवन देवा,
सुर नर इन्द्र करे तोरी सेवा ।।
चोथी आरति चउगति चूरे,
मन वांछित फल शिव सुख पूरे ।।
पंचमी आरति पुण्य उपाया,
मूलचंद रिखब गुण गाया-जय ।।जय०
मंगलदीप
दीवो रे दीवो प्रभु, मंगलिक दीवो,
आरती उतारो ने बहु चिरंजीवों ।
सोहामणुं घेर पर्व दिवाली,
अम्बर-खेले अमराबाली ।
दीपाल भणे ऐणे कुल अजुवाली,
भावे भगते विघन निवारी,
दीपाल भणे एणे ए कलिकाले,
आरति उतारी राजा कुमार पाले,
अम घेर मंगलिक तुम घेर मंगलिक,
मंगलिक चतुर्विध संघ ने होजो, दीवो रे दीवो...
नमो जिणाणं दादा 🙏🙏🙏
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