श्वेताम्बर परंपरा 8 दिनों तक पर्युषण महापर्व की तथा दिगंबर परंपरा में दस दिनों तक पर्युषण (दशलक्षण महापर्व) की आराधना की जाती है ।
पर्युषण जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है और धर्म साधना के लिए सबसे उत्तम समय है .
इस समय में हम विविध प्रकार से धर्म आराधना एवं साधना कर सकते है
हम अपने वाणी का, खाने का,पहनने का ,संयम कर के भी साधना कर सकते है .
इस समय में हम विविध प्रकार से धर्म आराधना एवं साधना कर सकते है
हम अपने वाणी का, खाने का,पहनने का ,संयम कर के भी साधना कर सकते है .
रोजाना एक सामायिक जरुर करे l हो सके तो प्रतिक्रमण भी करे l जीवन में कष्टों को दूर करने के ये सबसे उत्तम समय है ..
जैन धर्म में सबसे उत्तम पर्व है पर्युषण। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमंम तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है।
जैन धर्म में सबसे उत्तम पर्व है पर्युषण। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमंम तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है।
पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दीवाली की भी संज्ञा दी गई है।
जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं।
यदि हम हर घड़ी हर समय अपनी आत्मा का शोधन नहीं कर सकते तो कम से कम पर्युषण के इन दिनों में तो अवश्य ही करें। .
यह त्याग का पर्व है. मन से, वचन से और काय से त्यागने का पर्व.
सब मिलजुल कर इसे मनाएं.
जिस तरह दीवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय-व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं। वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं।
यदि हम हर घड़ी हर समय अपनी आत्मा का शोधन नहीं कर सकते तो कम से कम पर्युषण के इन दिनों में तो अवश्य ही करें। .
यह त्याग का पर्व है. मन से, वचन से और काय से त्यागने का पर्व.
सब मिलजुल कर इसे मनाएं.
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