जैसे घी के साथ मिट्टी मिली हुई है और उसको हमने गर्म कर दिया है | मिट्टी से मिला होने पर भी घी तो घी ही है , मिट्टी अलग द्रव्य है और घी अलग | गर्म होते हुए भी वह घी अपने स्वभाव में अर्थात चिकनेपने में ही विद्यमान है | गर्मपने के अभाव में भी चिकनेपने की अर्थात घी की उपलब्धि होती है , परन्तु चिकनेपने के अभाव में घी की उपलब्धि नहीं होती , अतः चिकनापना ही घी का ( स्वभाव ) सर्वस्व है | घी में गर्मी स्वयं नहीं आई अपितु अग्निजन्य है | यहाँ दृष्टांत में मिट्टी के स्थान पर शरीर , चिकनेपने के स्थान पर चैतन्य , गर्मी के स्थान पर भावकर्म और अग्नि के स्थान पर द्रव्यकर्म हैं | मिट्टी और घी के मिश्रण के समान शरीर व् चैतन्य मिलकर एक से भास् रहे हैं , परन्तु हैं वे पृथक - पृथक द्रव्य , और गर्म घी के समान चैतन्य भी राग - द्वेष
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जन्म से जैन होना भी सौभाग्य की बात है, पर उससे भी परम सौभाग्य की बात है.. जीवन में दया, क्षमा, सत्य, शील, संतोष, सदाचार आदि जैनत्व के संस्कार आना