भोजन पर भावनाओं का भी गहरा असर पड़ता है इसलिए व्यक्ति को निराेगी रहने के लिए भोजन शुद्ध भाव से ग्रहण करना चाहिए। क्रोध, ईर्ष्या, उत्तेजना, चिंता, मानसिक तनाव, भय आदि की स्थिति में किया गया भोजन शरीर में दूषित रसायन पैदा करता है। इससे शरीर कई रोगों से घिर जाता है। शुद्ध चित्त से प्रसन्नतापूर्वक किया गया आहार शरीर को पुष्ट करता है। कुत्सित विचार और भावों के साथ किए गए भोजन से व्यक्ति कभी स्वस्थ नहीं रह सकता। इसी के साथ भोजन बनाने वाले व्यक्ति के भाव भी शुद्ध होने चाहिए। उसे भी ईर्ष्या, द्वेश, क्रोध आदि से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। इस तरह इन चारों शुद्धियों के साथ भोजन ग्रहण करें तो निश्चित रूप से हमारा मन निर्मल रहेगा और शरीर भी स्वस्थ रहेगा।
** Visit: http://jainismSansar.blogspot.com for more or like www.fb.com/jainismSansar or G+ profile https://plus.google.com/102175120666184498438/ **
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें