सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वृहत् शांतिधारा पाठ Vrhat Shantidhara Paaṭha

 ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वंवं Oṁ hrīṁ śrīṁ klīṁ aiṁ ar’haṁ vaṁ maṁ haṁ saṁ taṁ paṁ vaṁ-vaṁ मंमं हंहं संसं तंतं पंपं झंझं Maṁ-maṁ haṁ-haṁ saṁ-saṁ taṁ-taṁ paṁ-paṁ jhaṁ jhaṁ झ्वीं झ्वीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय-द्रावय Jhvīṁ jhvīṁ kṣvīṁ kṣvīṁ drāṁ drāṁ drīṁ drīṁ drāvaya-drāvaya नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ॐ ह्रीं क्रों अस्माकं पापं खण्डय खण्डय Namō̕r’hatē bhagavatē Śrīmatē ōṁ hrīṁ krōṁ asmākaṁ pāpaṁ khaṇḍaya khaṇḍaya जहि-जहि दह-दह पच-पच पाचय पाचय Jahi-jahi daha-daha paca-paca pācaya  pācaya ॐ नमो अर्हन् झं झ्वीं क्ष्वीं हं सं झं वं ह्व: प: ह: Ōṁ namō ar’han jhaṁ ivīṁ kṣvīṁ haṁ saṁ jhaṁ vaṁ hva: pa: ha: क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्ष: क्ष्वीं Kṣāṁ kṣīṁ kṣūṁ kṣēṁ kṣaiṁ kṣōṁ kṣauṁ kṣaṁ kṣa: Kṣvīṁ  ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रैं ह्रों ह्रौं ह्रं ह्र: Hrāṁ hrīṁ hrūm̐ hrēṁ hraiṁ hrōṁ hrauṁ hraṁ hra: द्रां द्रीं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठ: ठ: Drāṁ drīṁ drāvaya drāvaya namō̕r’hatē bhagavatē śrīmatē ṭha: tha: अस्माकं (शांतिधार

श्री उवसग्गहरं स्त्रोत ~ Shri Uvasaggaharam strotra

मान्यता है कि इस स्त्रोत की रचना अंतिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु स्वामी जी ने करी थी। इस स्त्रोत की यह विशेषता है कि इसमे किसी लौकिक देव देवी की स्तुति नही है, बल्कि इसमे तो देवाधिदेव भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति की गई है। सामान्य तौर पर इसे 27 बार पढा जाता है। इस स्त्रोत का नाम ही उवसग्गहरं है। अर्थात उपसर्ग (दुख/विपत्ति) को हरने(समाप्त करने) वाला। और जिनदेव की शुद्ध मन से की हुई भक्ति से हुई निजर्रा से तो दुखो का शमन होना निश्चित ही है। इस विपत्ति के समय मे नवकार महामंत्र के जाप/उच्चारण के बाद उवसग्गहरं स्त्रोत भी पठनीय है। हम भी यही मंगलकामना करते ही की, शीघ्र ही हम सभी को इस विश्वव्यापी महामारी से राहत मिले।      श्री #उवसग्गहरं स्त्रोत उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं । विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।1।। अर्थ : प्रगाढ़ कर्म- समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरों के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान पार्श्वनाथ को मैं वंदना करता हूं ! विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।2।। अर्थ : विष