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Suvichar - सुविचार - पाप पुण्य का भेद

पुण्य किसी को दगा देता नहीं। पाप किसी का सगा होता नहीं। #jainismSansar #jain #jainism #suvichar http://jainismSansar.blogspot.com/

My prayer - मेरी प्रार्थना

⁠⁠⁠   अतिसुन्दर प्रार्थना               सुकून उतना ही देना,    प्रभु जितने से जिंदगी चल जाए,       औकात बस इतनी देना, कि,          औरों  का भला हो जाए,      रिश्तो में गहराई इतनी हो, कि,            प्यार से निभ जाए,      आँखों में शर्म इतनी देना, कि,         बुजुर्गों का मान रख पायें,       साँसे पिंजर में इतनी हों, कि,          बस नेक काम कर जाएँ,            बाकी उम्र ले लेना, कि,        औरों पर बोझ न बन जाएँ My Prayer http://jainismSansar.blogspot.com/ #jainismSansar #jainismlearner #jain #jainism #suvichar #thoughtoftheday #inspirationalquotes #prayer #happythoughts   

Gyan panchami ki aaradhana - ज्ञान पंचमी की आराधना

✍ज्ञान से बडी कोई शक्ति नहीं, ✍ज्ञान से बडा कोई बल नही, ✍ज्ञान से बड़ा कोई धन नही, ✍ज्ञान से बड़ी कोई पूजा नहीं, ✍ज्ञान से बड़ी कोई साधना नहीं, ✍ज्ञान से बड़ी कोई आराधना नहीं,  ज्ञान पंचमी की आराधना..  ज्ञान की आराधना का दिन है। तीर्थंकर भगवान् महावीर ने अपनी देशना में कहा है... स्थाई सुख के साधन है...  ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप l ◾सुख में बाधा डालने वाले है... क्रोध, मान, माया और लोभ l ❇ ये पाँच ज्ञान की आराधना में बाधक कारण है, अतः  अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ । थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सए णय प ।। अर्थात् : अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य... ज्ञान-प्राप्ति में बाधक कारण है l ***********************************    ज्ञानपंचमी दिवस की क्रिया - आराधना... ***********************************  जिनालय में जाकर बच्चों द्वारा ज्ञान के साधन : पुस्तक काँपी, पैन, पैसिल आदि चढवाकर ज्ञान की वासक्षेप से पुजा जरूर कराये l आज से ज्ञान पंचमी की आराधना तप शुरू करने का विधान है, जिसकी अवधि 5 वर्ष 5 मा...

ज्ञान पंचमी और उसका महत्त्व

ज्ञान पंचमी और उसका महत्व एवं उससे जुडी प्रचलित कथा… भाव एवं क्रिया (कार्य) के द्वारा कर्म-बंधन का अनुपम उदारहण… भरतखंड में अजितसेन राजा का वरदत्त नामक एक पुत्र था, वह राजा का अत्यंत दुलारा था। उसका बोध (ज्ञान) नहीं बढ़ पाया, अच्छे कलाविदों एवं ज्ञानियों आदि के पास रखने पर वह ज्ञानवान नहीं बन सका। उसकी यह स्थिति देखकर राजा बहुत खिन्न रहता था, सोचता था की मुर्ख रहने पर यह प्रजा का पालन किस प्रकार करेगा…? राजा अजितसेन ने सोचा -” मैंने पुत्र उत्पन्न करके उसके जीवन-निर्माण का उत्तरदायित्व अपने सिर पर लिया है, अगर इस दायित्व को मैं ना निभा सका तो पाप का भागी होऊँगा। इस प्रकार सोचकर राजा ने पुरस्कार देने की घोषणा करवाई की जो कोई विद्वान उसके राजकुमार को शिक्षित कर देगा उसे यथेष्ट पुरस्कार दिया जाएगा, मगर कोई भी विद्वान् ऐसा नहीं मिला जो उस राजकुमार को कुछ सिखा सकता, राजकुमार कुछ भी ना सीख सका…उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर ही रहा। * शिक्षा के अभाव के साथ उसका शारीरिक स्वास्थ भी खतरे में पड़ गया, उसे कोढ़ का रोग लग गया। लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगे…सैंकड़ों दवाएँ ...

ज्ञान पंचमी और उसका महत्त्व

ज्ञान पंचमी और उसका महत्व एवं उससे जुडी प्रचलित कथा… भाव एवं क्रिया (कार्य) के द्वारा कर्म-बंधन का अनुपम उदारहण… भरतखंड में अजितसेन राजा का वरदत्त नामक एक पुत्र था, वह राजा का अत्यंत दुलारा था। उसका बोध (ज्ञान) नहीं बढ़ पाया, अच्छे कलाविदों एवं ज्ञानियों आदि के पास रखने पर वह ज्ञानवान नहीं बन सका। उसकी यह स्थिति देखकर राजा बहुत खिन्न रहता था, सोचता था की मुर्ख रहने पर यह प्रजा का पालन किस प्रकार करेगा…? राजा अजितसेन ने सोचा -” मैंने पुत्र उत्पन्न करके उसके जीवन-निर्माण का उत्तरदायित्व अपने सिर पर लिया है, अगर इस दायित्व को मैं ना निभा सका तो पाप का भागी होऊँगा। इस प्रकार सोचकर राजा ने पुरस्कार देने की घोषणा करवाई की जो कोई विद्वान उसके राजकुमार को शिक्षित कर देगा उसे यथेष्ट पुरस्कार दिया जाएगा, मगर कोई भी विद्वान् ऐसा नहीं मिला जो उस राजकुमार को कुछ सिखा सकता, राजकुमार कुछ भी ना सीख सका…उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर ही रहा। * शिक्षा के अभाव के साथ उसका शारीरिक स्वास्थ भी खतरे में पड़ गया, उसे कोढ़ का रोग लग गया। लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखने लगे…सैंकड़ों दवाएँ चल...

नीलवर्णा पार्श्वनाथ भगवान - मांडव (M.P.)

श्री नीलवर्णा पार्श्वनाथ भगवान की अलोकिक और मनभावन यह प्रतिमा जी...सुपार्श्वनाथ भगवान के प्रमुख तीर्थ स्थल मांडवगड़ m.p. में स्थित हे... यह प्रतिमा जी मूलनायक भगवान के मंदिर के निचे बने तलघर में हे.. http://jainismSansar.blogspot.com/ #jainismSansar #jaintravel #jaintemple #mptourism #madhyapradesh #toursim #indiatourism #mandav #mandu #mandavgarh #mp #jainism #jain #parahvnath #tirthankar #jaintirth #blue #nilvarna #bhagwan

दीपावली एवं नुत्तन वर्ष कीमंगल शुभ कामनाएं!

आप सभी को प्रभु श्री महावीर जैसी शक्ति के साथ क्षमा गुरु श्री गौतम जैसी लब्धि के साथ विनय अभयकुमार जैसी बुद्धि के साथ निर्मलता बाहुबलीजी जैसे बल के साथ विवेक धन्ना शालीभद्र जैसी रिद्धि सिद्धि के साथ त्याग वज्रकुमार जैसा स्वाध्याय प्रेम श्री आनंदघनजी जैसा अध्यात्म प्रेम श्रेणिक महाराजा जैसी प्रभुभक्ति कुमारपाल महाराजा जैसी गुरुभक्ति कायवन्ना सेठ जैसा सौभाग्य पुण्य श्रावक जैसी समता केसरियाजी जैसा भण्डार प्राप्त हो आप सभी को  दीपावली एवं नुत्तन वर्ष की मंगल शुभ कामनाएं! http://jainismsansar.com/2013/11/blog-post.html #diwali #dipawali #jainismsansar #jainism #jainDarshan #jainlearning #mahavir #mahavirswami #gotam #swami #newYear #hinduNewYear #festival #festivaloflights #diya #dip #mahavirNirvan #jainDharm #jain #jainlearner #diputsav #dipoutsav #bahubali #abhaykumar #kaywanna #kumarpal #

14 dereams of mata trishla

महारानी त्रिशला के 14 शुभ स्वप्न... भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं, यह सोचते-सोचते वे ही गहरी नींद में सो गई, उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने 14 शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह आषाढ़ शुक्ल षष्ठी का दिन था। सुबह जागने पर रानी के महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की। राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते चलेंगे, तब महारानी त्रिशला ने अपने सारे स्वप्न उन्हें एक-एक कर विस्तार से सुनाएं। आइए जानते है भगवान महावीर के जन्म से पूर्व महारानी द्वारा देखे गए चौदह अद्भुत स्वप्न :- पहला स्वप्न :-   स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया।          फल  : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राजा सिद्धार्थ ने पहले स्वप्न का फल बताया : उनके घर एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा। दूसरा स्वप्न : श्वेत वृषभ। ...

What PARYUSHAN means...?

What PARYUSHAN means...? 💎   PARYUSHAN means Festival of self friendship and realisation of soul. Festival of sacrifice, penance & endurance. Festival of soul purification & self search, time to keep aside the post, wealth & prestige & be with the God. The  time to forget & forgiveness make the enemy a friend & increase the   【  LOVE and KINDNESS  】 🚩 1st - Day of Paryusan: The day of making the mind & soul pure and concentrate in VITRAAG 🚩 2nd - Day of Paryushan: On this day with the help of our kind speech spread the fragrance of inspiring virtues & constructive activities. Donate with free hand & become a KING. 🚩 3rd - Day of Paryushan: To make the Mind (soul) & Body Pure and pious with the self of sacrifice & penance. Self control & friendship is also practice. Meditation for enlightment. 🚩 4th - Day of Paryushan: Rare occasion of gaining ...

तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा क्यों की जाती है ?

तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा क्यों की जाती है ? नव अंग १. अंगूठा २. घुटना ३. हाथ ४. कंधा ५. मस्तक ६. ललाट ७. कंठ ८.  हृदय ९. नाभि ॥ तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा ...

सुविचार - इंसान की पहचान माफ़ी

🙏🏻सुप्रभात्🙏🏻 🤗 *माफ़ी वही दे सकता है जो अंदर से मज़बूत हो...* *खोखले इंसान सिर्फ बदले की आग में जलते रहते है...* 💞 जो आपकी खुशी के लिये हार मान लेता है, उससे आप कभी जीत नही सकते... http://jainismSansar.blogspot.com...

सुविचार - संत और वसंत

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹        संत का आना और वसंत का आना एक सा होता है क्योंकि...... जब वसंत आता है तो प्रकृति सुधर जाती है और जब गुरू आता है तो संस्कृति सुधर जाती है... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 http://jainismSansar.blogspot.com ...

जीवन परिचय - २१ श्री नमीनाथ जी

 २१ श्री नमीनाथ जी जन्म स्थान  मिथिला  निर्वाण स्थान  सम्मेद शिखरजी  पिता जी  विजया राजा  माता जी  विपरा रानी  चिन्ह / प्रतिक  हरा कमल   इक्कीसवें तीर्थंकर ‍ नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा/ विपरा  ( सुभ्रदा - वप्र ) था। आप स्वयं मिथिला के राजा थे। आपका जन्म इक्ष्वाकू कुल में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मिथिलापुरी में हुआ था। आषाढ़ मास के शुक्ल की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कैवल्य की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्ण की दशमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - उत्पल ( हरा कमल   ) , चैत्यवृक्ष - बकुल , यक्ष - गोमेध , यक्षिणी - अपराजिता ।

जीवन परिचय - २४ श्री महावीर स्वामीजी

  २४ श्री महावीर स्वामीजी जन्म स्थान  कुण्डलपुर  निर्वाण स्थान  पावापुरी  पिता जी सिद्धार्थ राजा   माता जी त्रिशला  रानी  चिन्ह / प्रतिक सिंह  चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्धमान , पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला ( प्रियंकारिनी ) था। आपका जन्म चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी के दिन कुंडलपुर में हुआ था। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा वैशाख शुक्ल की दशमी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। 42 वर्ष तक आपने साधक जीवन बिताया। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन आपको पावापुरी पर 72 वर्ष में निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - सिंह , चैत्यवृक्ष - शाल , यक्ष - गुह्मक , यक्षिणी - पद्मा सिद्धायिनी ।

जीवन परिचय - २३ श्री पार्श्वनाथ जी

  २३ श्री पार्श्वनाथ जी जन्म स्थान वाराणसी  निर्वाण स्थान सम्मेद शिखरजी पिता जी अश्वसेन   माता जी वामादेवी  चिन्ह / प्रतिक नाग   आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। राजा अश्वसेन वाराणसी के राजा थे।  चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - सर्प , चैत्यवृक्ष - धव , यक्ष - मातंग , यक्षिणी - कुष्माडी  हैं। जैन पुराणों के अनुसार तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलत: ही वे तेईसवें तीर्थंकर बने। पुराणों के अनुसार...

जीवन परिचय - २२ श्री नेमिनाथ जी

  २२ श्री नेमिनाथ जी जन्म स्थान सौर्यपुरा  निर्वाण स्थान गिरनार जी  पिता जी समुद्र विजय  माता जी शिवा देवी   चिन्ह / प्रतिक शंख   बावीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। आपका जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को शौरपुरी ( मथुरा ) में यादववंश में हुआ था। शौरपुरी ( मथुरा ) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण । इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को गिरनार पर्वत पर कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को आपको उज्जैन या गिरनार पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों ...