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फागुनी तेरस और उसका महत्व ~ छः गांव की यात्रा का विवरण

*⛰️कितने सालों से चली आ रही है ?* छ गाउं की यात्रा में कौन से स्थल आते है । 🛕यानी मंदिर . भगवान नेमिनाथ के समय हुवे हुए। कृष्ण महाराजा के पुत्रों में शाम्ब और प्रध्युमन नाम के दो पुत्र थे। भगवान नेमीनाथ की पावन वाणी सुनकर शाम्ब -प्रध्युमन जी को वैराग्य हुआ। भगवान के पास दीक्षा लेकर परमात्मा की आज्ञा लेकर शत्रुंजय गिरिराज के उपर तपस्या और ध्यान करने लगे । अपने सभी कर्मो से मुक्त होकर *फागण सुदी तेरस के दिन शत्रुंजय गिरिराज के भाडवा के पर्वत* के ऊपर से मोक्ष – मुक्ति पाये थे उन्हीं के दर्शन करने के लिए . लगभग 84 हजार वर्षों से यह *फागण के फेरी* चल रही है फागण के फेरी में आते हुए दर्शन के स्थल. दादा के दरबार मे से निकल ने बाद रामपोल दरवाजे *छ गाउ की यात्रा प्रारंभ* होती है . उसमें 5 दर्शन के स्थल है *1 – 6 गाउ की यात्रा* प्रारंभ होती ही 100 पगथिया के बाद ही देवकी माता के 6 पुत्र का समाधि मंदिर आता है वो यहा मोक्ष गयें थे . [कृष्ण महाराज के 6 भाई का मंदिर] *2- उलखा जल* नाम का स्थल आता है . (जहां दादा का पक्षाल आता है ऐसा कहते हे वो स्थल ) यहां पर आदिनाथ भगवान के पगले है *3- चं
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Aarti avm mangaldeep आरती एवं मंगलदीप

1. आरती एवं मंगलदीप उतारने से सात भवों के पाप कटते है ।  2. मंगलदीप आरती से पूर्व प्रज्ज्वलित करना चाहिये l 3, आरती आँख के ऊपर और नाभि से नीचे नही ले जाना चाहिये ।  4. आरती उतारते समय श्रावक पगड़ी / पाघड़ी व दुपट्टा रखता है और श्राविकाए चुनरी ओढती है, खूले मस्तक आरती उतारने से आशातना लगती है ।  5. आरती उतारते वक्त देवाधिदेव के दोनों तरफ चंवर, पंखा, झालर डंका, नगाड़े बजते है और घण्टनाद शंखनाद भी अवश्य करना चाहिये ।  6. आरती सजोड़े या एक ही व्यक्ति को उतारनी चाहिये...  7. आरती बोलते समय एक दूजे आरती बदलते है वो वह आरती अखण्ड नही रहती, खण्डित हो जाती है ।  8. आरती में कुछ नगद नारायण रखकर उतारना चाहिये, खाली हाथ नही ।  9. आरती प्रज्ज्वलित यदि करना है तो माचित से नही, धूपबत्ती से प्रज्ज्वलित होती है ।  10. आरती उतारने के बाद अपनी ओर रखना और चावल से वधाना चाहिये । आरती - दीपक जलाकर भगवान की महिमा का गुणगान करना आरती है। आरती प्रातःकाल पूजन के समय और संध्या काल अर्थात सूर्य अस्त से पहले करनी चाहिए। सूर्य अस्त के बाद या रात्रि में आरती न करें तो अच्छा है। आरती का समय संध्याकाल है। आरती अर्थात

Aacharya Shri Rishabhchandra Surishwar ji Maharaj

आचार्य ऋषभचंद्र सुरीश्वर गुरुदेव के वियोग में गुरूभक्तों का रूदन-क्रंदन सुनकर जर्रा- जर्रा रोया होगा........ क्या जैन क्या अजैन सबके दिलों में बसे थे ऋषभ बाबजी युगों-युगों तक अमर रहेगे.....                                                                                                                           सुप्त पड़ती कोरोना की चाल लाखों गुरु भक्तों पर इतनी भारी, अकल्पनीय और असहनीय होगी इसकी कल्पना किसी ने भी नही की थी... सेकंड वेव का रौद्र रूप कहे या विधाता का विधान... गुरुदेव का विछोह गुरूभक्तों से सहा नही जा रहा...   मोहनखेडा़ तीर्थ ही नही वे जन -जन के रोम- रोम में बसे थे... किसी के बाबजी तो किसी की प्रेरणा थे वे ...   रूदन और क्रंदन से भरे गुरूभक्तों की डबडबाती आंखे मानो कह रही है हम अनाथ हो गए ........                                          जिनके सानिध्य में... जिनके सामिप्य

वृहत् शांतिधारा पाठ Vrhat Shantidhara Paaṭha

 ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वंवं Oṁ hrīṁ śrīṁ klīṁ aiṁ ar’haṁ vaṁ maṁ haṁ saṁ taṁ paṁ vaṁ-vaṁ मंमं हंहं संसं तंतं पंपं झंझं Maṁ-maṁ haṁ-haṁ saṁ-saṁ taṁ-taṁ paṁ-paṁ jhaṁ jhaṁ झ्वीं झ्वीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय-द्रावय Jhvīṁ jhvīṁ kṣvīṁ kṣvīṁ drāṁ drāṁ drīṁ drīṁ drāvaya-drāvaya नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ॐ ह्रीं क्रों अस्माकं पापं खण्डय खण्डय Namō̕r’hatē bhagavatē Śrīmatē ōṁ hrīṁ krōṁ asmākaṁ pāpaṁ khaṇḍaya khaṇḍaya जहि-जहि दह-दह पच-पच पाचय पाचय Jahi-jahi daha-daha paca-paca pācaya  pācaya ॐ नमो अर्हन् झं झ्वीं क्ष्वीं हं सं झं वं ह्व: प: ह: Ōṁ namō ar’han jhaṁ ivīṁ kṣvīṁ haṁ saṁ jhaṁ vaṁ hva: pa: ha: क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्ष: क्ष्वीं Kṣāṁ kṣīṁ kṣūṁ kṣēṁ kṣaiṁ kṣōṁ kṣauṁ kṣaṁ kṣa: Kṣvīṁ  ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रैं ह्रों ह्रौं ह्रं ह्र: Hrāṁ hrīṁ hrūm̐ hrēṁ hraiṁ hrōṁ hrauṁ hraṁ hra: द्रां द्रीं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठ: ठ: Drāṁ drīṁ drāvaya drāvaya namō̕r’hatē bhagavatē śrīmatē ṭha: tha: अस्माकं (शांतिधार

श्री उवसग्गहरं स्त्रोत ~ Shri Uvasaggaharam strotra

मान्यता है कि इस स्त्रोत की रचना अंतिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु स्वामी जी ने करी थी। इस स्त्रोत की यह विशेषता है कि इसमे किसी लौकिक देव देवी की स्तुति नही है, बल्कि इसमे तो देवाधिदेव भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति की गई है। सामान्य तौर पर इसे 27 बार पढा जाता है। इस स्त्रोत का नाम ही उवसग्गहरं है। अर्थात उपसर्ग (दुख/विपत्ति) को हरने(समाप्त करने) वाला। और जिनदेव की शुद्ध मन से की हुई भक्ति से हुई निजर्रा से तो दुखो का शमन होना निश्चित ही है। इस विपत्ति के समय मे नवकार महामंत्र के जाप/उच्चारण के बाद उवसग्गहरं स्त्रोत भी पठनीय है। हम भी यही मंगलकामना करते ही की, शीघ्र ही हम सभी को इस विश्वव्यापी महामारी से राहत मिले।      श्री #उवसग्गहरं स्त्रोत उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं । विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।1।। अर्थ : प्रगाढ़ कर्म- समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरों के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान पार्श्वनाथ को मैं वंदना करता हूं ! विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।2।। अर्थ : विष

फागण सूद तेरस ~ गिरिराज की छः कोसी यात्रा ~ श्री शत्रुंजय महातीर्थ की भावयात्रा

"6" गाऊ (कोस )भाव- यात्रा आज शुक्रवार दिनांक 26/03/ 2021 को फागण फेरी श्री सिद्धाचल जी "6" गाऊ (कोस) यात्रा का मंगल दिवस है।  सह भाव- यात्रा की भाव यात्रा प्रेषित कर रहा हूं। YouTube video Link:   https://youtu.be/Njag-F5wcJw फागण फेरी का महत्त्व  : फागण सूद तेरस के दिन श्री शत्रुंजय महातीर्थ पर श्री कृष्ण महाराज के पुत्र शाम्ब~पद्धमन साढ़े आठ करोड़ मुनीवर के साथ सिद्धगति को प्राप्त हुवे। ❤ श्री शत्रुंजय महातीर्थ की भावयात्रा ❤ श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है । चॊदह राजलोक मे ऎव्सा एक भी तीर्थ नहि है जिसकी तुलना शत्रुंजय तीर्थ से कर सके । वर्तमान मे भरतक्षेत्र मे तिर्थंकर नहीं है, केवलज्ञानी नहीं है, विशिष्ट ज्ञानी भी नहीं है, फिर भी महाविदेह क्षेत्र की पुण्यशाली आत्मा भरत क्षेत्र के मानवी कॊ परम सोभाग्यशाली मानते है, उसका एक मात्र कारण इस शाक्ष्वत तीर्थ का भरत क्षेत्र मे होना है । हम कितने भाग्यशाली है हे की हमे यह शाश्वत तीर्थ मिला है ॥ हमे इस तीर्थ की बार~बार यात्रा करनी चाहिए । नव्वाणुं प्रकार कि पूजा की ढाल मे बताया हे की

दीक्षा में ओघा लेते देखने की तड़प के पीछे का असली राज ....भव्य दीक्षा महोत्सव

✍️दीक्षा में ओघा लेते देखने की तड़प के पीछे का असली राज .... भव्य दीक्षा महोत्सव❤️🌹 🔹पूरा मंडप खचाखच भरा हुआ। संगीत की धुन संयमऔर गुरु की  आज्ञानुसार विधि करते मुमुक्षु। 🔸और वो शुभ घड़ी आयी और गुरुदेव के हाथों ओघा मिलते ही नाचते मुमुक्षु को देख पल भर के लिए तो आँखे भीनी हो जाती है 🔸और सभा इस वैरागी ने वन्दन गा उठती है वैसे ही जब दीक्षा का विदाई समारोह होता है तो रात को 11/12 बजे तक बिना प्रभावना के लोग बैठे रहते है कि कब दीक्षार्थी का स्पीच हो और वो उसे सुने 🔹आज भारत भर में जगह जगह पर सैकड़ो दीक्षाएं हो रही है फिर हर दीक्षा महोत्सव में इतनी की इतनी भीड़ व् उत्साह देखने को मिलता है क्यू ?आखिर क्यू? जो व्यक्ति ज्यादा क्रियात्मक धर्म आदि नही करता जिन आज्ञा का पालन भी नही करता पर दीक्षा मंडप में दीक्षा देखने तो पहुंच ही जाता है!* 🔹इन सब बातों का सार इतना ही निकलता है भले ही आज हमारा मन संसार के रंगों में रंगा हो पर इसकी असारता का अहसास सब को है संसारी मन पाप के बोझ तले इतना दब चूका है कि उसे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई ही नही देती पर जब भी ऐसे दीक्षा के प्रसंग आते है पापी हो या पुण्य शा