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जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन परिचय - २१ श्री नमीनाथ जी

 २१ श्री नमीनाथ जी जन्म स्थान  मिथिला  निर्वाण स्थान  सम्मेद शिखरजी  पिता जी  विजया राजा  माता जी  विपरा रानी  चिन्ह / प्रतिक  हरा कमल   इक्कीसवें तीर्थंकर ‍ नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा/ विपरा  ( सुभ्रदा - वप्र ) था। आप स्वयं मिथिला के राजा थे। आपका जन्म इक्ष्वाकू कुल में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मिथिलापुरी में हुआ था। आषाढ़ मास के शुक्ल की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कैवल्य की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्ण की दशमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - उत्पल ( हरा कमल   ) , चैत्यवृक्ष - बकुल , यक्ष - गोमेध , यक्षिणी - अपराजिता ।

जीवन परिचय - २४ श्री महावीर स्वामीजी

  २४ श्री महावीर स्वामीजी जन्म स्थान  कुण्डलपुर  निर्वाण स्थान  पावापुरी  पिता जी सिद्धार्थ राजा   माता जी त्रिशला  रानी  चिन्ह / प्रतिक सिंह  चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्धमान , पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला ( प्रियंकारिनी ) था। आपका जन्म चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी के दिन कुंडलपुर में हुआ था। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा वैशाख शुक्ल की दशमी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। 42 वर्ष तक आपने साधक जीवन बिताया। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन आपको पावापुरी पर 72 वर्ष में निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - सिंह , चैत्यवृक्ष - शाल , यक्ष - गुह्मक , यक्षिणी - पद्मा सिद्धायिनी ।

जीवन परिचय - २३ श्री पार्श्वनाथ जी

  २३ श्री पार्श्वनाथ जी जन्म स्थान वाराणसी  निर्वाण स्थान सम्मेद शिखरजी पिता जी अश्वसेन   माता जी वामादेवी  चिन्ह / प्रतिक नाग   आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। राजा अश्वसेन वाराणसी के राजा थे।  चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - सर्प , चैत्यवृक्ष - धव , यक्ष - मातंग , यक्षिणी - कुष्माडी  हैं। जैन पुराणों के अनुसार तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलत: ही वे तेईसवें तीर्थंकर बने। पुराणों के अनुसार         पहले जन्म में वे मरुभूम

जीवन परिचय - २२ श्री नेमिनाथ जी

  २२ श्री नेमिनाथ जी जन्म स्थान सौर्यपुरा  निर्वाण स्थान गिरनार जी  पिता जी समुद्र विजय  माता जी शिवा देवी   चिन्ह / प्रतिक शंख   बावीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। आपका जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को शौरपुरी ( मथुरा ) में यादववंश में हुआ था। शौरपुरी ( मथुरा ) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण । इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को गिरनार पर्वत पर कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को आपको उज्जैन या गिरनार पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न -

जीवन परिचय - २० श्री मुनिसुव्रत जी

 २० श्री मुनिसुव्रत जी जन्म स्थान   राजगृही   निर्वाण स्थान   सम्मेद शिखरजी पिता जी   सुमित्रा राजा    माता जी   पद्मावती   चिन्ह / प्रतिक  कछुआ   बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम    पद्मावती     था। आपका जन्म ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की आठम को    राजगृही     ( राजगढ़) में हुआ था। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की नवमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - कूर्म ( कछुआ   ) , चैत्यवृक्ष - चंपक , यक्ष - भृकुटि , यक्षिणी - विजया ।

जीवन परिचय - १९ श्री मल्लिनाथ जी

  १९ श्री मल्लिनाथ जी जन्म स्थान   मिथिला   निर्वाण स्थान   सम्मेद शिखरजी पिता जी   कुम्भाराजा माता जी   प्रभावती   चिन्ह / प्रतिक   कलश उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ के पिता का नाम कुंभराज और माता का नाम प्रभावती ( रक्षिता ) था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आपका जन्म मिथिला में हुआ था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दीक्षा ग्रहण की तथा इसी माह की तिथि को कैवल्य की प्राप्ति भी हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न - कलश , चैत्यवृक्ष - कंकेली ( अशोक ), यक्ष - वरुण , यक्षिणी - जया है।